Friday 25 November 2011

II रुद्राष्टकम् II

नमामीशमीशान  निर्वाणरूपं  |
विभुं व्यापकं ब्रह्म  वेदस्‍वरुपम ||
निजं निर्गुणं  निर्विकल्पं निरीहम्|
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्||

निराकार मोंकारमूलं तुरीयम्|
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ||
करालं महाकाल कालं कृपालं |
गुणाकार संसारपारं नतोहम् ||

तुषाराद्रि शंकाश गौरं गंभीरम्|
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्||
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा |
लसद्भालबालेंदु कंठे भुजंगा ||

चलत्कुण्‍डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं |
प्रसन्‍नाननं  नीलकंठं   दयालम् ||
मृगाधीश  चर्माम्बरं  मुण्डमालं |
प्रियं  शंकरं  सर्वनाथं  भजामि  ||

प्रचंडं प्रकृष्‍टं प्रगल्भं परेशं |
अखंडं अजं भानुकोटि प्रकाशम् ||
 त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिम्  |
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् ||

 कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी |
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ||
चिदानन्द  सन्दोह मोहापहारी |
प्रसीद प्रसीद  प्रभो मन्मथारी ||

न यावद् उमानाथ पादारविन्दम् |
भजंतीह लोके परे वा नाराणाम्  ||
न तावत्सुखम शांति सन्तापनाशम् |
प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम्  ||

न जानामी योगं जपं नैव  पूजाम् |
नतोहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ||
जरा जन्मदु:खौघ  तातप्यमानं |
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||

            रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं  विप्रेण हर्तोशये  |
         ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां  शम्भु प्रसीदति  ||

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